आज कल मैं कुछ भी बोलती हूँ तो लोग ये बोल के मेरे शब्दों पर फुल स्टॉप लगा देते है " क्या अनाब- शनाब बक रही है". फिर मुझे याद आया कोई मेरा पिछले कई महीनो से बेसब्री से इंतज़ार कर रहा है और वो है मेरा ब्लॉग. आज उसी अनाब-शनाब डिब्बे में से कुछ खूबसूरत ( सिर्फ मेरे लिए ) मोती उलटने जा रही हूँ. पसंद आये तोह आप बे-झिझक उन मोतियों की माला बना सकते है.
मैं बेख़ौफ़ भाग रही हूँ जाना कहाँ है ये भी मुझे नहीं पता. पीछे सब छूट रहा था घर-परिवार, कॉलेज, कॉलेज की यादें, दोस्ती, और एक स्पेशल दोस्त. वो दोस्त जिसे मैंने कुछ साल पहले मेरी तरह भटकते हुए एक सड़क पर पाया था. हम एक ही थिएटर के किरदार थे. और सिर्फ अपनी-अपनी भूमिका तलाश रहे थे.उससे ज्यादा लगाव इसलिए था क्योंकि वो बिल्कुल मेरे जैसा था. वो रफ़्तार पकड़कर अपने सपनों को चूमना चाहता था, वो बर्फीली रातों में सर्दी की चादर ओढे, आधी रात के जुगनू से दोस्ती करना चाहता था, वो नन्हीं- नन्हीं बूंदों में घुल कर उनके साथ अपने शहर में बरसना चाहता था. मैं भी यही सब तो करना चाहती थी. उसमे मैं अपने आप को देख रही थी जैसे वो आईना हो और मेरी छवि मुझसे कह रही हो " क्या सोच रही है, इतना मत सोच, तू मैं, मैं तू एक है तो है सदा के लिए". जब हम सदा के लिए एक थे तो क्यों समय में अपना कठोर बाण चला कर मेरी छवि को घायल कर दिया था. मेरा सब कुछ छूटने पर भी कभी दिल इतना हताश नही हुआ जितना उस दिन था. मैं उसे आखिरी बार स्टेशन पर छोड़ने गयी तो ऐसा लग रहा था दिल के किसी कोने के हज़ार टुकड़े हो रहे हो. और वही टुकड़े बारिश बन कर काले बादलों से गिर रहे हो. शायद मेरे हिस्से के आंसू, बादल अपनी आँखों से गिरा रहा थे. वो कहते है ना हमारे पास जो रहता है तब उसकी कीमत हमे पता नही चलती. अहसास तब हुआ जब वो मुझसे दूर जा रहा था. मेरी पूरी दुनिया उसी ट्रेन में बैठी थी जो स्लो मोशन में और फिर फ़ास्ट मोशन में, मेरे सामने से चली गयी. मुझ पागल को लग रहा था, ट्रेन अगले स्टेशन से मुड़ कर वापस आएगी मुझे मेरी दुनिया वापस लौटाने, पर वो कठोर वापस आई ही नही.
जिंदगी किसी के जाने से कहा रूकती है, ये तो अपनी धुन में चलती रहती है भले हमें इसकी धुन पसंद हो या ना हो. मैं भी वक़्त के साथ बहती चली जा रही थी. सब बिखरा प्रतीत हो रहा था, मैंने सोचा, उसके इंतज़ार में मैं अपना वक़्त क्यों खो रही हूँ सिर्फ उसके लिए जो कह के गया था " मैं जल्द ही वापस आऊंगा, कब ..? ये बताना उसने जरुरी नहीं समझा था. क्यों मैं अपनी मंजिल से भटक रही हूँ छोड़ो ये प्यार- व्यार का नाटक. मैं अपनी अधूरी सी दुनिया में वापस लौट गयी थी. ढूढने पर एक अच्छी नौकरी भी मिल गयी, पर मैं कुछ और ही चाहती थी. क्या ...ये मैं खुद नहीं समझ पा रही थी. उस दिन मेरा जन्मदिन था मैं उदास थी सब खुश थे, आज तो बर्थडे पार्टी मिलेगी, अरे कोई मुझसे तो पूछो मुझे कैसा लग रहा था. मैं अपने हिस्से की जिंदगी के कालचक्र में से आज फिर एक साल कम होता देख रही थी. मैं वाशरूम गयी और खुद को देखा ...हाँ, चौबीस साल की डेडलाइन थी आज. उसके बाद पच्चीस,,,नहीं नहीं नहीं. मैं वापस २२ की हो कर जीना चाहती थी. पर मेरी सुनने वाला कोई नहीं था. काश कोई रिवाइंड बटन होता, और मैं कॉलेज मैं पहुँच कर अपने दोस्तों के साथ बे-फ़िक्र हो कर दुनिया की बैंड बजाती. लाइफ से मेरा रिश्ता सिर्फ ये था, जैसे मैं मशीन हूँ और लाइफ मेरा चालक. खैर मेरे अन्दर फूटते अम्बार को मैंने बहार आने से रोका और ऑफिस में अपने केबिन में जा कर बैठ गयी. लंच टाइम में स्टाफ का लंच मेरी तरफ से था, मन किया जा कर कह दूँ सबसे खाओ भूखों खाओं, पर .."फॉर गॉड सेक " मेरा पीछा छोड़ो और मुझे आज के दिन अकेला छोड़ दो, पर ऐसा मैं नहीं कर सकती थी क्युकी ये " बेड मैनर्स" होता. मैं खुद गुड गर्ल हो कर बेड मैनर्स नहीं कर सकती थी. इतने में एक पीयोन आया और बोला " मैडम आपका सामान आया है" मैंने पूछा कहाँ से उसने कहा पता नहीं, मैंने पूछा किसने भेजा है उसने कहा पता नहीं. मैंने जल्दी जल्दी उस सामान की पैकिंग खोली और मैं हैरान इतने सारे " लाल गुलाबो का गुलदस्ता"...मैंने बस इतना कहा " वाओ".. आखिर कौन हो सकता है नाम भी नहीं पता था मुझे तो. एक दम से फ़ोन की घंटी बजी और उसने कहा...मैं बोल रहा हूं,मुझे लगा ये पक्का " वो" ही है जो कह कर गया था "मैं वापस आऊंगा". खिड़की पर आओ, उसने कहा . मैं ऑफिस की खिड़की पर भाग कर गयी और देखा " मेरी दुनिया" नीछे खड़ी है. अच्छा हुआ खिड़की मैं शीशा था वरना मैं ऐक्साइटमेंट मैं खिड़की से ही कूदने वाली थी. उसने फ़ोन पर ही कहा, "खूबसूरत लग रही हो". मैं फ़ोन पर ही रोने लगी और उसने कहा " आई लव यू, विल यू मैरी मी" . मैं बस इतना कहा " स्टूपिड, थप्पड़ खाओगे.. और हम दोनों हसने लगे. मैं फिर से 22 क्या 18 की हो गयी थी. उसने खूबसूरत कहा तो लगा, मैं ही इस दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की हूं. अब मैं उसके साथ अपना चौबीसवां नहीं बल्कि सोलहवा जन्मदिन मना रही थी.
मैं अपनी दुनिया के साथ उड़ने के लिए फिर से तैयार थी. और लोग कहते हैं ये अनाब- शानाब है. कौन बताये इन्हें ये हसीन मुलाक़ात के बाद बारिश की झड़ी थी. पागलों ....