Wednesday, March 2

अलहदा दृष्टिकोण के फिल्मकार थे सत्यजीत रे

पाथेर पांचाली, देवी, चारुलता, शतरंज के खिलाड़ी जैसी लोकप्रिय फिल्में देने वाले सत्यजीत रे अपने समय से बहुत आगे थे। उनकी सोच और नजरिया एक आम इंसान से बहुत ही भिन्न था। देश को ये अमर फिल्में देने वाले सत्यजीत दा कभी किताबों के आवरण (कवर) बनाया करते थे यह बात कम ही लोग जानते होंगे।
         
दो मई 1921 को कलकत्ता में जन्मे सत्यजीत रे ने शुरुआत में विज्ञापन एजेंसी में बतौर जूनियर विज्युलाइजर काम शुरु किया था। इसी दौरान उन्होंने कुछ बेहतरीन किताबों के आवरण बनाए जिनमें से मुख्य थी जिम कार्बेट की मैन इटर्स आफ कुमायूं और जवाहर लाल नेहरु की डिस्कवरी आफ इंडिया। तब कौन जानता था कि किताबों के आवरण बनाने वाला लड़का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने वाला पहला भारतीय फिल्मकार बन जाएगा। सत्यजीत रे न केवल एक बेहतरीन लेखक बल्कि अलहदा दृष्टिकोण के फिल्मकार थे। उनकी पहली फिल्म पाथेर पांचाली ने अनेक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीते जिसमें कान फिल्म फेस्टिवल का श्रेष्ठ मानवीय दस्तावेज का सम्मान भी शामिल है। पाथेर पांचाली को बनाने के लिए सत्यजीत रे को काफी संघर्ष करना पड़ा यहां तक कि अपनी पत्नी के जेवर भी गिरवी रखने पड़े थे पर इस फिल्म की सफलता ने उनके सारे कष्ट दूर कर दिये।
सत्यजीत दा को परिभाषित करने के लिए महान जापानी फिल्मकार अकीरा कुरासोवा का यह कथन काफी है यदि आपने सत्यजीत रे की फिल्में नहीं देखी हैं तो इसका मतलब आप दुनिया में बिना सूरज या चांद देखे रह रहे हैं। अपने जमाने की प्रसिद्ध हीरोइन वहीदा रहमान कहती हैं कि उनका नजरिया बिल्कुल साफ था। वे अन्य फिल्मकारों से बिलकुल जुदा थे। उन्हें पता था कि किस कलाकार से किस तरह का काम चाहिए। निर्देशक जहनू बरुआ कहते हैं- रे भारत में पहले फिल्म निर्माता थे जिन्होंने विश्व सिनेमा की अवधारणा का अनुसरण किया। भारतीय सिनेमा में आधुनिकतावाद लाने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। उनकी फिल्में हमेशा यथार्थ पर केन्द्रित रहीं और उनके चरित्रों को हमेशा आम आदमी के साथ जोड़ा जा सकता है। उन्होंने कहा कि पाथेर पांचाली, अपूर संसार तथा अपराजितो में सत्यजीत रे ने जिस सादगी से ग्रामीण जनजीवन का चित्रण किया है वह अद्भुत है। चारुलता में उन्होंने मात्र सात मिनट के संवाद में चारु के एकाकीपन की गहराई को छू लिया है। उन्होंने अपनी हर फिल्म इसी संवेदनशीलता के साथ गढ़ी। शर्मिला टेगौर के मुताबिक सत्यजीत रे बड़ी आसानी से मुश्किल से मुश्किल काम करवा लेते थे। अर्मत्य सेन के मुताबिक रे विचारों का आनंद लेना और उनसे सीखना जानते थे। यही उनकी विशेषता थी। चार्ली चैपलिन के बाद रे फिल्मी दुनिया के दूसरे व्यक्ति थे जिसे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने डॉक्टरेट की उपाधि से नवाजा था। उन्हें भारत रत्न दादा साहेब फालके, मानद आस्कर एवं अन्य कई पुरस्कारों से देश विदेश में सम्मानित किया गया था।
सत्यजीत दा की अनोखी कल्पनाशीलता का पता फेलूदा तोपसे और प्रो.शंकू के कारनामों से सजी उनकी कहानियों से चलता है। ऐसा लगता है जैसे वे भविष्य में झांकने की शक्ति रखते थे। उनके द्वारा ईजाद किये हुए फेलूदा और प्रो.शंकू के किरदार आज भी लोगों को गुदगुदाते हैं और उनके कारनामों में आज भी उतनी ही ताजगी महसूस होती है जितनी तब जब ये लिखे गए थे।
फेलूदा की लोकप्रियता तो इतनी अधिक है कि उसे देसी शरलक होम्स कहा जाता है। भारत के अन्य किसी भी उपन्यासकार या लेखक के किरदार को इतनी लोकप्रियता नहीं मिली है जितनी कि रे के फेलूदा और प्रो.शंकू को मिली। रे की प्रतिभा से प्रभावित पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने उनसे रवीन्द्रनाथ टेगौर पर वृत्तचित्र बनाने का आग्रह किया था। कुछ आलोचकों को कहना था कि रे की फिल्में बहुत ही धीमी गति की होती हैं पर उनके प्रशंसक इन आलोचनाओं का कड़ा जवाब यह कहकर देते थे कि उनकी फिल्में धीमी बहती नदी के समान हैं जो सुकून देती हैं।
रे की लोकप्रियता का इसी से पता चलता है कि वर्ष 2007 में बीबीसी ने उनके किरदार फेलूदा की दो कहानियों को अपने रेडियो कार्यक्रम में शामिल करने की घोषणा की थी।
 सत्यजीत रे 70 वर्ष की उम्र में 23 अप्रैल 1992 को इस दुनिया से विदा हुए। उस समय हजारों प्रशंसकों ने कलकत्ता स्थित उनके निवास के बाहर एकत्रित होकर उन्हें श्रद्धांजलि दी थी।

महाशिवरात्रि

 shivratri शिव-शक्ति के दिव्य मिलन का पर्व महाशिवरात्रि आज मनाया जा रहा है। आज श्रद्धालु शिवालयों में भगवान भोलनाथ का जलाभिषेक कर आक-धतूरे, पुष्प,फल, बील पत्र आदि अर्पित कर रहे है। जय बम भोले, जय शिव शंकर और हर-हर महादेव के जयकारों से मंदिर गूज रहा है।
मान्यता के अनुसार, आज ही के दिन देवो के देव भोले शंकर का पार्वती के साथ विवाह हुआ था। इस दिन के पौराणिक काल से ही महाशिवरात्रि के रूप में मनाने की पंरपरा है। मान्यता है कि आज के दिन सच्चा मन से भोले भंडारी की पूजा अर्चना करने से सभी मन्नत पूरी होती है। धर्मनगरी हरिद्वार में महाशिवरात्रि की धूम है।
शिव रात्रि को लेकर सबसे ज्यादा चहल-पहल शिव की ससुराल कनखल में है। कनखल में शिव मंदिरों के दुल्हन की तरह सजाया गया है।
शिवजी को सभी देवताओं में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इनकी आराधना सभी प्रकार की फलों को प्रदान करती है। महादेव को कई नामों से जाना जाता है जैसे भोलेनाथ, नीलकंठ, उमापति, भोलेनाथ, दीनानाथ, शंकर आदि। शिवरात्रि पर इनकी पूजा-अर्चना से सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है और सुख-समृद्धि में बढ़ोतरी होती है। यदि आप भी शिवरात्रि पर धर्म लाभ और पुण्य लाभ अर्जित करना चाहते हैं और किसी बड़े मंदिर या तीर्थ जाने का समय नहीं है तो अपने नजदीक किसी भी शिव मंदिर में पूजा करें। निश्चित ही इस पूजा से भी भगवान महादेव की कृपा अवश्य प्राप्त होगी।

शिवजी को भोलेनाथ कहा जाता है क्योंकि वे बहुत ही भोले हैं और अपने भक्तों के भावों से ही प्रसन्न हो जाते हैं। यदि कोई व्यक्ति धन की कमी या समय की कमी के कारण महादेव के किसी तीर्थ पर जाने में अक्षम हैं तो वे सुविधानुसार किसी भी मंदिर में शिवलिंग की पूजा कर सकते हैं।

ऐसा माना जाता है कि कण-कण में शिवजी विराजमान हैं। इसी वजह से शिवजी सभी मंदिरों में विराजमान हैं। इस शिवरात्रि यदि आपके पास पर्याप्त समय और धन है तो आप महादेव के 12 ज्योतिर्लिंग में से किसी भी ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर सकते हैं। ज्योतिर्लिंग की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है, शास्त्रों के अनुसार इन 12 स्थानों पर भोलेनाथ साक्षात विद्यमान हैं और भक्तों की मनोकामनाएं तुरंत ही पूरी करते हैं। साथ ही शिवरात्रि पर माता पार्वती के पूजन का भी विशेष महत्व है। माता पार्वती की पूजा के लिए देशभर में 51 शक्तिपीठ बताए गए हैं। इन 51 शक्तिपीठ की पूजा का विशेष महत्व है। शिवरात्रि पर किसी भी शक्तिपीठ के भी दर्शन और पूजा करनी चाहिए।