आम
हो कर भी
आम नहीं
ख़ासम
ख़ास थी जिंदगी
हवाओं
में इब्तदा से
सी कशिश
और
रातों में शहद-सी मिठास
थी जिंदगी
चांदनी
में इठलाते सफ़ेद
टुकड़े
और
हर-पल चमकती-आस थी
जिंदगी
दीयों
में तेल कम
था मगर
मीलों
दूर रोशनी भिखेरती थी जिंदगी
सपनों
की गति कम
थी मगर
हिरन-सी दौड़ती
थी जिंदगी
कुछ
आधा तू, कुछ
आधी मैं,
फिर
भी पूरी सी
थी जिंदगी
फिसलते
हुए एहसासों की
गर्दिश में
गीले
आसमान की सीलन
अब भी है
ऐ
जिंदगी क्या तू
नाराज़ अब भी
है ...
Amazing...
ReplyDeletethaku Sir ji
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