Wednesday, January 12




फिल्में भडकाती हैं बच्चों में आक्रोश  


फिल्में लोगों के मनोरंजन के लिए बनाई जाती हैं लेकिन दुख की बात यह है कि फिल्में अपने इस उद्देश्य को पूरा कर पाने में पूरी तरह सक्षम नहीं हैं। आजकल फिल्मों में बहुत अधिक हिंसा दिखाई जाती है, इस वजह से दर्शकों की रुचि भी विकृत हो चुकी है। खास तौर से बच्चे फिल्मों में दिखाई जाने वाली हिंसा पर ही सबसे ज्यादा ध्यान देते हैं। उनके अवचेतन मन में हीरो की परदे पर दिखने वाली छवि ही अंकित होती है। वे उन्हीं की तरह बनना चाहते हैं। फिल्में बच्चों के मन में दबे आक्रोश को और अधिक भडकाने का काम करती हैं। बच्चों का यह आक्रोश जब बाहर फूटता है तो कभी-कभी वे अपने दोस्तों के साथ आक्रामक और हिंसक व्यवहार कर बैठते हैं। बच्चों के व्यक्तित्व और चरित्र के निर्माण में फिल्में निश्चित रूप से अपना गहरा प्रभाव डालती हैं। टीनएजर और युवा वर्ग पर भी फिल्मों का नकारात्मक प्रभाव पडता है। टीनएजर फिल्मों में दिखाई जाने वाली हर बात को सही मान लेते हैं और उसी का अनुसरण करने लगते हैं। समाज में बढती हिंसा और अपराध के लिए कहीं कहीं फिल्में जिम्मेदार हैं। फिल्म उद्योग से जुडे लोग अकसर यह तर्क देते हैं कि फिल्में देखकर लोग हिंसा नहीं करते बल्कि समाज में जो होता है हम उसी की सच्चाई बयान करते हैं। लेकिन उनका यह तर्क बिलकुल गलत है। ऐसा नहीं है कि समाज में केवल हिंसा और नकारात्मक बातें ही होती हैं। कई अच्छे कार्य भी समाज में हो रहे हैं, जिनसे सभी को प्रेरणा मिल सकती है। उन अच्छे कार्यो को भी फिल्मों के माध्यम से लोगों के सामने लाया जा सकता है। फिल्म निश्चित रूप से अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है और इसका इस्तेमाल सकारात्मक उद्देश्यों के लिए किया जाना चाहिए।

1 comment:

  1. उम्दा पोस्ट
    सुंदर पॉडकास्ट के आभार ....

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