Tuesday, January 18
सपने हज़ार
इन नन्ही नन्ही आँखों ने सपने हज़ार देखे हैं,
डर है कहीं कोई सपना अखियों से बाहर न छलक जाये...
डर है कहीं ज़माने को पता न चल जाये
डर है कहीं ये मुझसे दूर न हो जाये
ज़माने की कटुता ये सह न पाएंगे
इतने कोमल हैं कि दर्द सह न पाएंगे
डर है कहीं इनमे खरोच न आ जाये
डर है कहीं लहू लोहान न हो जाये
इतने प्यार और विश्वास के साथ इन्हें संजोया
जैसे माला में मोती पिरोया है
जिस दिन सपनो की ये माला टूटी
समझ लेना मैं जिंदगी से रूठी
किसी के स्पर्श से ये कहीं छू मंतर न हो जाये
इसलिए इन्हें आँखों में पनाह दी है
ये सोच कर कि मेरी अर्थी के साथ
ये भी मिट्टी में मिल जायेंगे
तब भी राख़ के साथ ये उड़ते जायेगे
इस खुवाइश के साथ .....
शायद अब भी पूरे हो जायेगे.....
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i wish dear ke tere sapne kabhi na toote.........
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