Thursday, December 30

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 एक आदमी मर कर ऊपर पहुंचा,यमराज के पास हाज़िर होने से पहले उसने स्वर्ग और नरक के दरवाजे से झाँक कर वहां का नज़ारा देखा.स्वर्ग में सब कुछ अच्छा था, शान्ति थी, कोई उन्घ रहा था,कोई पढ़ रहा था,कोई प्रार्थना कर रहा था पर नरक का दृश्य अदभुत था.वहां नाच-गाना चल रहा था, खाना पीना हो रहा था.खूब रोशनी थी.जब यह आदमी यमराज के पास हाज़िर हुआ उसने  कहा  की  महाराज  मुझे  नरक  दे  दीजिये.पर जैसे ही वह नरक गया और हत्थोड़े-पिटाई  से  सामना पड़ा, तो वह  चिल्ला  पड़ा , "मेरे  साथ  धोखा  हुआ  है ". उसे  फिर  यमराज  के  पास  ले  जाया  गया , तो उसने कहा की मैंने देखा कुछ और, भोगा  कुछ और है. ये  तो धोखा ही हुआ.इस पर यमराज ने कहा की तुमने जो कुछ देखा,वह असल में नरक के विज्ञापन विभाग का कमाल था....तो देखा आपने विज्ञापन का कमाल इसलिए कुछ भी खरीदने से पहले  उसकी  पूरी  जानकारी  जरुर ले ले

जागो ग्राहक जागो

हम रो रोकर लिखते हैं वो यूं हंसकर पढ़ जाते हैं

हम रो रोकर लिखते हैं वो यूं हंसकर पढ़ जाते हैं .........
जो सपनों को तोड़ चुके हैं वो सपनों में आते है
आंसूं बरसाती आंखों ने टूटे ख्वाबों को ढोया
वादों की यादों में पड़कर जाने मन कितना रोया
हम रो रोकर लिखते हैं वो यूं हंसकर पढ़ जाते हैं .........

तुम्हारे साथ

तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है
कि दिशाएँ पास आ गयी हैं,
हर रास्ता छोटा हो गया है,
दुनिया सिमटकर
एक आँगन-सी बन गयी है
जो खचाखच भरा है,
कहीं भी एकान्त नहीं
न बाहर, न भीतर।

Tuesday, November 9

सत्ता का भोग

सोनिया की सार्वजनिक छवि भले ही सरल व राजनीति की छलकपट भरी दुनिया से अपरिचित किसी महिला की हो, वे या उनके सहयोगी बड़ा नपा तुला खेल खेल रहे हैं। देखा जाये तो प्रियंका की राजनैतिक सफलता पर लोग और काँग्रेसी कार्यकर्ता अधिक आश्वस्त होते, उन्हें आगे करना ज़्यादा आसान होता। पर सोनिया प्रियंका को कीचड़ से दूर रखना चाहती हैं,  बड़े राजनेताओं के सानिध्य में रहकर सोनिया संयमित कदम उठाना सीख चुकी हैं। जब राहुल ने शुरुवात की तो वे रूखे और गैरपेशेवराना लगते थे, जो मुँह आया बोल देते थे। गये महीनों में उन्होंने कम बोलना और ज्यादा मुस्कराना सीख लिया है। राजनीति में चुप्पी का भी महत्व होता है। सोनिया ने सही मोहरे को आगे किया है और बखूबी सत्ता के केंद्र से दूर रहकर रिमोट सत्ता का सुख भोग रही हैं। राजनीति के मैखाने में रहकर मदिरा का स्वाद लेने की मजबूरी हो जाती है।

काँग्रेसी राजनीति की इस उथलपुथल में दल के नेताओं में बैचेनी काबिज है। राजनैतिक वनवास भोग रहे नटवर सिंह ने शगूफा छोड़ा कि अब उम्रदराज़ नेताओं को पद छोड़ कर नये लोगों को मौका देना चाहिये। बहुत अनुनय की थी आलाकमान से कि, “मैडमजी मोरे अवगुन चित्त न धरो”, पर पद जाता रहा।  कुर्सी जाने के बाद, उम्र के इस पड़ाव में ऐसे ख्याल अक्सर आने लगते हैं। व्हील चेयर से जकड़े अजीत जोगी जैसे नेताओं की राजनैतिक महत्वाकांक्षा पर भी कुठाराघात हुआ, “राहुल जैसे गैर अनुभवी को आगे करने का क्या मतलब?” तुरंत गुहार लगा कर कहा की सोनिया बने प्रधानमंत्री। अंदाज़ था कि गाड़ी के पहिये में लाठी अड़ाकर राजनैतिक अविश्वास की ज्वाला भड़का देंगे पर आलाकमान की फटकार से दुबक कर बैठ गये।

युवाओं को सामने लाने की हर ऐसी बात पर हर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती है। जब तक खाट न पकड़ लें भाजपा में भी आडवाणी के समानान्तर या उपर कोई नहीं। राजनाथ सिंह मनमोहन सिंह जैसे प्रॉक्सी पद से संतोष कर रहे हैं। समय रहते कुछ  पाने की आकांक्षा अति प्रबल हो तो फिर उमा भारती जैसे नई पार्टी बनानी पड़ती है या फिर “बहन” मायावती जैसे अपने बड़े नेता को बीमार बता कर उन्हें हाउस अरेस्ट में रख पद हथियाने का कुकर्म करना पड़ता है।


पके फल करुणानिधि पुनः सत्ता का भोग लगाने बैठे हैं, मधुमेह के रोगी की मीठा खाने की इच्छा जैसा है यह सत्ता सुख भोगने का शौक। शौक जो करूणानिधि जैसे धुरंधर नेताओं और सोनिया जैसी अनुभवहीन, किसी को भी अफीम की लत की तरह लग सकता है।


DEEPIKA

Sunday, November 7

कोई कहे कहता रहे!!!!

नेता बनने के लिये जिस्मानी और रूहानी खाल दोनों का मोटी होना ज़रूरी है। जीवन का आदर्श वाक्य होना चाहिये “कोई कहे कहता रहे कितना भी हम को…”। बेटे के साथ अन्याय के नाम पर कब्र मे पैर लटकाये करूणानिधि ने नई पार्टी तैरा दी, राज्यपाल बूटा सिंह के राज्य की नौका के पाल खुलम्म खुल्ला उनके बेटे संभाल रहे हैं, काबिना मंत्री और मातृभक्त मणिशंकर अय्यर एक तेल कूँए का उद्घाटन करने पहुँचे तो उसका नामकरण अपनी अम्मा के नाम पर कर दिया, गोया यह देश की नहीं व्यक्तिगत संपत्ति हो।

दागी मंत्रियों को निकालने के लिये संघटन और विपक्ष दोनों लामबंद हैं पर वे बेफिक्री से सत्तासुख भोगते हुए अपनी सात पुश्तों की पेंशन फंड तैयार कर रहे हैं। वर्तमान काँग्रेसी सरकार ने तो सरकारी तंत्र में एक और सतह का परोक्ष निर्माण कर दिया है। पहले राष्ट्रपति को लोग रबर स्टैम्प का पद कहते थे अब ऐसा पद प्रधानमंत्री के लिये भी बन गया। पराये खड़ाउं रख कर राज चला रहे हैं मनमोहन। लोग हाय तौबा करते रहें सत्ता के दो केद्रों पर, अपन तो कानों में रुई डाल कर रूस की राजकीय यात्रा करेंगे।


अब सामंती और जमींदारी राज के दिन तो कथित रूप से ख़त्म हो गये थे पर लोगों के तेवर कहाँ जाते हैं। वैसे मैं नवाब पटौदी की बात नहीं कर रहा। ये बात उसी परिवार की है जिस के नाम के बिना काँग्रेस की पहचान नहीं बन पाती। पता नहीं आप ने यह ध्यान दिया कि नहीं कि किस चतुराई से सोनिया गाँधी ने प्रधानमंत्री का पद ठुकरा कर कई निशानों पर तीर चलाये।

 राजनीतिक अनुभवहीनता से जो बट्टे उन पर लगते उन से से बचने का यह जोरदार तरीका था ही, राजीव के अनुभव से वह कम से कम यह तो सीख ही चुकी होंगी कि ऐसे में सरकार तो किचन कैबिनेटें ही चलातीं हैं और अनजाने ही बोफोर्स जैसी पाप की गठरिया कोई बगल में सरका दे तो इज्जत भी खराब होती है। परोक्ष रूप से सरकार चलाने से पब्लिक की नज़र से बचकर अपना उल्लू सीधा करना ज्यादा आसान है।


एक और निशाना जो साधा गया वह है राहुल का औपचारिक रूप से राजकुमार के रूप में पदस्थापन। राजकुमार का राज्याभिषेक करने के पूर्व ईमेज बिल्डिंग करना तो ज़रूरी है ही सो सरकारी भोंपू काम में लाये जा रहे हैं। जनता पहचान ले अपने राजकंवर को, निहाल हो जाये, फिदा हो जाये, और जब ट्रकों से उतरें तो  आँखें मूँद कर शहीद पिता और बलिदानी माता के सलोने पुत्र को बिना पाँच का नोट लिये वोट डालने को तैयार हो जाये।
rahul_gandhi.jpgएक दिन समाचार देख रहा था दूरदर्शन पर। समाचार वाचक ने अमेठी की खबर दी, राजकुमार ने सगरे गाँव बिजली देने का वादा पूरा किया था, गाँव वालों को याद भी न होगा कि ये वादे कितनी बार किये गये।

 सरकारी उद्यम भेल के लोग भी मंच पर थे। प्रसारण “सीधा” हो रहा था, मानो संयुक्त राष्ट्र में पी.एम भाषण दे रहे हों। कैमरे के दायरे में फंसे सज्जन पात्र परिचय के बाद राजकुमार के गुण गाने लगे। प्रसारण सीधा चलता रहा। काफी देर बाद शायद निर्माता की तंद्रा भंग हुई और वे वापस लौटे सामंती सम्मोहन से। हैरत तब हुई जब दूरदर्शन ने दूसरे दिन के समाचारों में पुनः इसी समारोह की टीवी रपट दिखलाई। पी.एम.ओ ने डपट लगाई होगी, “टाईम का हिसाब नहीं रखते, समाचार को दस मिनट डीले नहीं कर सकते थे। राजकुमार का क्लोज़अप तक नहीं। अगर मैडम ने देख लिया होता तो मैं जाता इम्फाल और तुम जाते श्रीनगर दूरदर्शन केंद्र!” वैसे राहुल मुँहफट हैं, राजनयिक बोली अभी सीखी नहीं हैं सो चचा संजय नुमा निपट सोचते बोलते हैं, जतला दिया कि बुलाया था सो आये बाकी कुछ खबर नहीं।
तो हम लोग ये देखते रहेंगे, सोचते रहेंगे, लिखते रहेंगे।

इस बीच ईमेज बिल्डिंग की कवायद पूरी हो जायेगी, भाड़े की संस्थायें बाजार सर्वेक्षण कर हवा का रूख बतलायेंगी और उचित समय देखकर हो जायेगा राज्याभिषेक। मनमोहन जी खड़ाउं राज करने के लिये शुक्रिया! आप जायें। एकाध संस्मरण छपवा लें, ज्ञानपीठ, साहित्य अकादमी, फिर जो आप कहें, हैंहैंहैंहैंहैं। हमारे बच्चे स्कूली निबंध में लिखेंगे कि जमींदार होते थे कभी। पत्रकार भवें उमेठकर परिवारवाद की भर्त्सना करेंगे फिर सरकार की पहली वर्षगाँठ पर 6 चिकने पेज का परिशिष्ट छापेंगे। उधर इतालवी स्पा में बबल बाथ लेते राजकुमार की त्वचा भाप से कठोर होने के गुर लेती रहेगी। कोई कहे कहता रहे…


DEEPIKA...

Friday, November 5

धाक में ब्लॉगवाणी चिट्ठाजगत से आगे ;)

चिट्ठाजगत तकनीकी रूप से समृद्ध एग्रीगेटर है, ब्लॉगवाणी से फीचर्स के मामले में अव्वल। दीगर बात है कि पैकेजिंग और रूप के मामले में चिट्ठाजगत पिछड़ जाता है। पर एक चीज़ जिसमें ब्लॉगवाणी चिट्ठाजगत से आगे है और वो है धाक का मामला, जी नहीं मैं फाँट वगैरह बनाने की धाक की नहीं ;)  बल्कि चिट्ठाजगत पर “धाक” संख्या और ब्लॉगवाणी पर “पसंद” संख्या की बात कर रहा हूं।
 चिट्ठाजगत की धाक स्वचालित रूप से आती है, मुझे नहीं पता कहाँ से आती है। पर ब्लॉगवाणी का खास फ़ीचर है “डिग” शैली का पसंदोमीटर।
कुछ समय पहले घुघुती जी ने लिखा था कि अपना लिखा पसंद है ये समझाने के लिये पसंदोमीटर में 1 थपकी तो दिखनी ही चाहिये। तो इस खुराफात :idea:  को अंजाम देने के लिये आपको फायरफाक्स की ज़रूरत होगी। अब अपनी पोस्ट पर जाकर पसंदोमीटर को थपकायें, दूसरी थपकी देने पर वो आपको धमकायेगा कि “आपका मत दर्ज किया जा चुका है” वगैरह, पर आप हार न मानें।
ब्राउज़र को रिफ्रेश करें और थपकी दुबारा लगायें। लग गया न? नहीं लगा तो एक बार और रिफ्रेश करें या ब्राउज़र बंद कर पुनः खोलें। बस अब जितना मन चाहें इस प्रक्रिया को दुहरायें। आज अपन ने ये बीड़ा उठाया और चुना एक ऐसी पोस्ट को जिसका शीर्षक मेरे मन की बात करता है, “कविता हमारे समय का सबसे बड़ा फ्रॉड है”। इसको देखिये कैसे ज़ीरो से हीरो बना दिया। :mrgreen:
Blogvani Pasandometer

ध्यान दें कि इसमें कुकी वगैरह हटाने का दुष्कर्म नहीं किया गया। पर पसंदोमीटर पर सरसरी नज़र डालने पर अपन राम का मन कहता है कि ये राज़ कई और खुराफातियों को भी मालूम था :lol:
पुनःश्च: अगर दिल पे लगी हो तो टिप्पणी करने का कष्ट न करें....
DEEPIKA

Saturday, October 30

किशोर ने तोड़ा आईफोन का तिलिस्म

आईफोन अमरीका में सबकी ज़बान पर है, जिनके पास ये है उनके पाँव ज़मीं पर नहीं पड़ रहे और जिनके पास नहीं है वो इसकी कीमत गैरवाजिब बता कर कन्नी काट रहे हैं। खैर निरंतर पर एक लेख में ईस्वामी ने काफी पहले लिखा था कि इस फोन की सबसे बड़ी खामी है कि ये केवल एक ही सर्विस प्रोवाईडर के साथ काम करता है और वो है एटीएंडटी। George Hotzऔर इसी बात का तोड़ निकालने के लिये अपनी गर्मियों की छुट्टी शहीद की 17 साल के किशोर जॉर्ज होट्ज़ ने जिन्होंने 500 घंटों की मेहनत के बाद हार्डवेयर में सेंघ लगाकर अपना टीमोबाईल का सिम आईफोन पर चला ही लिया
 जॉर्ज ने ये सारी कारगुज़ारी करते समय अपने ब्लॉग पर लगातार अपडेट ही नहीं दिये, इसे दोहराने के तरीके भी बताये, हालांकि कौन अपने 500 डॉलर के फोन पर ये जोखिम उठाता ये शोचनीय प्रश्न है। वो ये दावा करता है कि ये गैरकानूनी काम नहीं था, और खुशनसीबी से एप्पल और एटीएंडटी दोनों ने ही उससे कोई पूछताछ नहीं की है।
उल्लेखनीय बात ये है कि जॉर्ज ने ये सारी जानकारी गुप्त रखने या बेचने की बजाय उसको जाल पर सार्वजनिक रखा और उसकी नेकनीयति का फल ये मिला कि उसके अनलॉक्ड फोन के बदले एक कंपनी सर्टीसेल ने उसे उसकी ही इच्छा के मुताबिक एक चमचमाती निसान 3507 भेंट कर दी। साथ ही दिये तीन 8 जीबी के नये आईफोन और नौकरी भी। ये भी खबर है कि गूगल ने भी उसे नौकरी का न्योता दिया है। मेहनत और अच्छी नीयत का फल वाकई मीठा होता है।
देखिये जॉर्ज से ये साक्षात्कार, इसमें उसका उत्साह और आत्मविश्वास दंग कर देता है। अच्छा लगता है जब वो इंटरनेट समुदाय के मदद की बात करता है।
DEEPIKA