आपने सुना होगा और अगर नहीं सुना तो अब सुन लीजिये ...
जब भी हम किसी चीज़ को एक जगह से दूसरी जगह ले जाते है तो उसे काफी अच्छे से पैक करके ले जाते है.
केकड़े बहुत सी चीज़ों में काम में लिए जाते है इसलिए वो बहुत दूर-दूर से एक जगह से दूसरी जगह ले जाए जाते है. ज्यादातर उन्हें पानी के जहाज में लाया जाता है. पर जिस पेटी में उन्हें रखा जाता है उस पर "ढ़क्कन " नहीं लगाया जाता क्यूंकि जब भी कोई केकड़ा पेटी से बाहर निकलने की कोशिश करता है तो बाकी के चार केकड़े उसकी टांग खींच लेते है और उसे ऊपर चढ़ने ही नहीं देते ... ऐसा हर केकड़े के साथ बारी-बारी से होता है इसलिए कोई भी केकड़ा पेटी से बाहर नहीं निकल पाता और ढ़क्कन लगाने की जरूरत ही नही पड़ती....
ठीक ऐसा ही हमारे साथ भी होता है जब भी कोई व्यक्ति आगे बढ़ने की कोशिश करता है तो केकड़ों की तरह ही हमारे आस पास के लोग हमसे चिढ़कर हमारी टांग खीचने लगते हैं. ख़ुद तरक्की करे या न करे पर किसी दुसरे को बनता हुआ देख बाकी के चार बर्दाश्त नही कर पाते और किसी न किसी तरह से उस व्यक्ति को नीचें गिराने की कोशिश लगातार करते रहते है.
बावजूद इसके दो लोग ऐसे है जो हमें अपने से भी ज्यादा ऊँचा उढ़ता हुआ देखना चाहते है और हमारी कामयाबी से सबसे ज्यादा खुश होते हैं.
वो दो लोग हैं
... पिता और गुरु ... father and teacher...
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